यह ब्लॉग एक साधन है मेरी जड़ों को थामे रखने का, अपने अस्तित्व को जीवित रखने का, अपने देश से मीलों दूर. अपने हिंदी भाषी भाई बहनों और मेरे नए घर अमेरिका के मध्य एक सूचना-सेतु स्थापित करने के लिए.

Friday, October 16, 2009

शिखर के उस पार!

ना जाने क्या है शिखर के उस पार!

तीसरा और चौथा पहर अभी शेष है
जगमगाती दुपहरी का ये भेष है
सूर्य अपने चरम पर
आशाएं अपने परचम पर
असली जीवन तो अभी बाकी है!

क्या पहुँच पाऊँगा अपने शिखर पर?

सूर्यास्त से भय कैसा
चंद्रमा तो शीतल है
और चौथे पहर के बाद एक सुंदर कल है

यही तो बस एक क्षण है
आज ही का बस जीवन है

दोपहर हो गई गंतव्य का पता नहीं
धूप से उत्साह में कोई कमी नहीं
पहले पहर जब निकले थे
आभास नहीं था कि इतना दूर पहुँच जाएंगे

दूसरे पहर में, कुछ नए मार्ग खुले हैं
कुछ नए साथी मिले हैं
कुछ नए पुष्प खिले हैं

जीवन मार्ग बहुत सुखद है
मिलकर एक बागीचा बनायें
जीवन रस को चहूं और पहुंचाएं

शिखर की अभिलाषा त्याग बस आगे बढ़ते जाएं
ना जाने क्या है शिखर के उस पार!

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भूल चूक माफ़

में पिछले १० सालों से अपने प्यारे देश से और हिंदी से दूर हूँ, भटक रहा हूँ इस दुनिया में, अगर मुझसे हिंदी भाषा में कोई भूल हो तो क्षमा करियेगा, मुझे ईमेल कर बताइयेगा और अपना स्नेह बनाये रखियेगा.

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