ना जाने क्या है शिखर के उस पार!
तीसरा और चौथा पहर अभी शेष है
जगमगाती दुपहरी का ये भेष है
सूर्य अपने चरम पर
आशाएं अपने परचम पर
असली जीवन तो अभी बाकी है!
क्या पहुँच पाऊँगा अपने शिखर पर?
सूर्यास्त से भय कैसा
चंद्रमा तो शीतल है
और चौथे पहर के बाद एक सुंदर कल है
यही तो बस एक क्षण है
आज ही का बस जीवन है
दोपहर हो गई गंतव्य का पता नहीं
धूप से उत्साह में कोई कमी नहीं
पहले पहर जब निकले थे
आभास नहीं था कि इतना दूर पहुँच जाएंगे
दूसरे पहर में, कुछ नए मार्ग खुले हैं
कुछ नए साथी मिले हैं
कुछ नए पुष्प खिले हैं
जीवन मार्ग बहुत सुखद है
मिलकर एक बागीचा बनायें
जीवन रस को चहूं और पहुंचाएं
शिखर की अभिलाषा त्याग बस आगे बढ़ते जाएं
ना जाने क्या है शिखर के उस पार!
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